आइन्स्टाइन,अंतरिक्ष और सापेक्षता भाग-1


आइन्स्टाइन के सिधांत (सापेक्षता ) को आइन्स्टाइन से भी अधिक सरल भाषा में समझाना मुझे असंभव प्रतीत होता (लगता )हैं ! आइन्स्टाइन के सिधान्तो को समझने में दो सबसे बड़ी कठिनाईया हैं ! पहली कठिनाई यह हैं कि इसके लिये गणित और भौतिक -विज्ञान के पर्याप्त ज्ञान की जरुरत हैं ! दूसरी कठिनाई यह हैं की यह सिधांत हमारे सामान्य -बुद्धि से मेल नही खाती हैं ! यह दूसरी कठिनाई मानव के विश्व के बारे में ज्ञान -बाधक रही हैं । सोलहवी सदी में लोग इस बात को सही मानते थे कि पृथ्वी एक गोलाकार खगोलीय पिंड हैं तथा सूर्य तथा अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं ,क्योंकि उनके ज्ञान के अनुसार पृथ्वी बिलकुल भी नही घूमती थी और पृथ्वी सपाट थी । एक शताब्दी बाद न्यूटन के सिधान्त के विषय में ऐसा ही समझा जाता था ,लेकिन आज हम जानते हैं कि न्यूटन के सिधान्त आइन्स्टाइन के सिधान्तो की अपेक्षा आसानी से समझा जा सकता हैं ।
आइन्स्टाइन का सापेक्षता-समन्धि शोध
1901 से आइन्स्टाइन ने हर साल एक लेख जर्मन पत्रिका ईयर बुक ऑफ़ फिजिक्स में लिखा ! 1905 में जब वे 26 साल के थे ,उन्होंने पांच शोध-पत्र प्रकाशित किये ! उनमे से एक शोध बहुत लम्बा था ! उस शोध का नाम था -ऑन दी इलेक्ट्रो-डायनोमिक्स ऑफ़ बॉडीज इन मोशन ! imagesयही वह शोध पत्र हैं,जिसने मानव की संकल्पना ही बदल दी ,वास्तव में यह सापेक्षता के विशेष सिधांत  (Theory of Special Relativity ) का ही विवरण था !
जुरिख में आइन्स्टाइन ने जो कुछ पढ़ा था ,वह सब न्यूटन के दो सौ साल पुराने नियमो और सिधान्तो पर आधारित था ! विश्व समन्धि न्यूटन के कल्पना को यान्त्रिक कहा गया था क्योंकि न्यूटन के बाद लगभग सभी वैज्ञानिक भौतिक घटनाओं को मशीन के रूप में समझते थे ! न्यूटन के नियम दो कल्पनायों थी : समय और अंतरिक्ष अचर(Variable ) हैं ! वे अंतरिक्ष को स्थिर मानते थे । वे अंतरिक्ष को ही सभी गतिशील वस्तुओं को समझने की जगह मानते थे । उन्नसवी सदी में कुछ वैज्ञानिको ने अनुभव किया कि कुछ वस्तुवे ,घटनाएँ ऐसी हैं जो इन नियमो से ताल-मेल नही बना पाता हैं । लेकिन फिर भी उस समय सैधांतिक रूप में न्यूटन के नियमो का विरोध नही किया जा सकता था ।
न्यूटन के कारपसकुलर अवधारणा(corpuscular hypothesis) के अनुसार प्रकाश छोटे छोटे कणों (जिन्हें न्यूटन ने कारपसकल नाम दिया था।) से बना होता है। न्युटन का यह मानना प्रकाश के परावर्तन(reflection) के कारण था क्योंकि प्रकाश एक सरल रेखा मे परावर्तित होता है और यह प्रकाश के छोटे कणों से बने होने पर ही संभव है। केवल कण ही एक सरल रेखा मे गति कर सकते है। लेकिन उसी समय क्रिस्चियन हायजेन्स( Christian Huygens) और थामस यंग( Thomas Young) के अनुसार प्रकाश में ,ध्वनि की तरह तरंगे होती थी । जिस तरह ध्वनि-तरंगे हवा की मदद से चलती हैं उसी प्रकार प्रकाश -तरंगो के लिये भी किसी माध्यम की जरुरत थी । क्योंकि प्रकाश दूर स्थिर तारों से पृथ्वी तक पहुँचने के लिए शुन्य से होकर गुजरता था । इसलिए यह सुझाव दिया गया कि प्रकाश ऐसे माध्यम से होकर आता था जो कि सारे अंतरिक्ष में मौजूद था इस माध्यम को ईथर कहा जाता था । यह सिधान्त तब साबित हुआ जब जेम्स मैक्सवेल ने प्रकाश -तरंगो को विद्युत-चुंबकिय दोलनो के रूप में साबित किया ।
जब आइन्स्टाइन सोलह साल के थे तो उन्होंने ईथर समन्धि सिधान्त में एक विरोधाभास देखा । उन्होंने तर्क दिया ,”यदि मैं प्रकाश की गति से एक प्रकाश किरण का पीछा करूँ तो वह प्रकाश किरण एक स्थिर आकाशीय दोलक विद्युत-चुम्बकीय(electro-magnetic) क्षेत्र की की तरह दिखाई देनी चाहिये ! लेकिन मैक्सवेल के सिधांत अनुसार ऐसा होता नही प्रतीत होता ! दरअसल यह सापेक्षता के विशेष सिधान्त (Theory of Special Relativity ) की शुरुवात थी !
१८८१ में ए.ए माइकलसन और डव्लू.मोरले नमक दो वैज्ञानिको ने ईथर से पृथ्वी की सापेक्ष-गति मालूम करने का प्रयास किया । इन दोनों वैज्ञानिको ने मिलकर इंटरफेरोमीटर नामक एक मशीन बनाया ,जिसकी मदद से प्रकाश को पैमाना मानकर यह प्रयोग किया जा सकता था ! उस प्रयोग के निष्कर्स काफी अजीब थे ! इसके मुताबिक पृथ्वी की ईथर की गति शून्य थी ! इसका मतलब यह था की या तो पृथ्वी गतिहीन थी या ईथर से समन्धि सिधांत गलत था ! इन प्रयोगों पर विचार करते हुए आइन्स्टाइन ने ईथर-सिधांत को अस्वीकृत कर दिया !उन्होंने यह धारणा दी कि सभी प्रयोग (प्रकाश से समन्धि ) प्रयोगों के एक से परिणाम होंगे ,चाहे किसी भी प्रयोगशाला में हो ,चाहे प्रयोगशाला गतिशील हो या स्थिर हो ! क्योंकि प्रकाश की गति निश्चित(निरपेक्ष) हैं ! बाद में उन्होंने एक सामान्य सिधांत दिया कि एकसमान चलने वाली सभी गतिशील पिंडो पर प्रकृति के नियम समान हैं ! प्रकाश की गति प्रकाश के स्त्रोत पर निर्भर नही हैं -इसका मतलब यह हुआ कि (न्यूटन के अनुसार ) निरपेक्ष गति को मालूम करने का कोई तरीका नही हो सकता ! ग्रहों की गति एक-दूसरे के सापेक्ष ही कही जा सकती हैं !आइन्स्टाइन ने निरपेक्ष समय की अवधारणा को भी अस्वीकार कर दिया ! उनका तर्क यह था की सभी प्रेक्षको का अपना ‘अब’ होता हैं ! समय निरपेक्ष (Absolute ) हैं जिस समय प्रेक्षक ‘अब’ कहता हैं वह सारे ब्रह्मांड के लिए लागू नही होता हैं ! एक ही ग्रह पर स्थित दो प्रेक्षक(Observer ) घड़ी मिलाकर या संकेत द्वारा अपनी निर्देश-पद्धति में समानता ल सकते हैं ,लेकिन यह बात उनके सापेक्ष एक गतिशील प्रेक्षक के विषय में लागू नही हो सकती !

जब आइन्स्टाइन 16 साल के थे ,उनके पास एक और समस्या थी की यदि वे प्रकाश किरण को प्रकाश की ही गति से पीछा करे तो प्रकाश किरण उन्हें कैसी दिखाई देगी ? सापेक्षता के सिधांत के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर यह था कि वे प्रकाश की गति से चल ही नही सकते थे ! इस सिधांत के अनुसार भौतिक बस्तुओ की गति प्रकाश की गति के लगभग बराबर भी हो सकती हैं ! प्रश्न यह उठता है कि यदि कोई प्रेक्षक प्रकाश की गति से चल रहा हो तो क्या प्रकाश उसके उपकरणों तक उसी गति से पहुंचेगा जिस गति से स्थिर अवस्था में पहुंचता हैं ? सापेक्षता के सिधांत के अनुसार ऐसा होना चाहिए ;इसे साबित करने के लिए आइन्स्टाइन ने गतिशील पैमाने और घड़ी के कुछ विशेषताओ की ओर संकेत किया !….अगले भाग में क्रमश:
संदर्भ ग्रन्थ (दोनों भागो में उपर्युक्त)
1)-Great discovers in modern science by petrick pringle
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18 विचार “आइन्स्टाइन,अंतरिक्ष और सापेक्षता भाग-1&rdquo पर;

  1. The origin of theory of relativity is based on the contributions of Galileo Galilee (first postulate, in 1932 in the book Dialogue Concerning the Two Chief World Systems), Henry Poincare (second postulate, 1898 The Measure of Time ), Henri Antoon Lorentz (mathematical basis of various phenomena) , Joseph Larmor (time dilation,1897), George FitzGerald (length contraction,1889) etc. So the significant phenomena were defined before Einstein’s June 1905 paper.
    Einstein simply re-quoted then in English.

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    • प्रदीप जी आपका सपेक्षा सम्बन्धी लेख काफी पसंद आया। मुझे एक बात समझ नहीं आई। कृपया ये बताने का कष्ट करे की प्रकाश की गति निरपेक्ष किस प्रकार है।अन्य गतियों की तरह ये स्थिर व गतिमान निरीक्षकों के लिए सापेक्ष क्यों नहीं है। क्या समय का धीमा हो जाना इस का कारण है?

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