आइन्स्टाइन,अंतरिक्ष और सापेक्षता भाग-3


by-प्रदीप कुमार

सापेक्षता का विशेष सिधांत 
इस सिधान्त में अलबर्ट आइन्स्टाइन ने इस बात पर बल दिया कि एकसमान चलने वाली सभी गतिशील पिंडो पर प्रक्रति के नियम समान हैं ! अलबर्ट आइन्स्टाइन इसे विद्युत-चुम्बकीय(electro-magnetic) क्षेत्र की तरह एक क्षेत्र समझते थे ! इस सिधांत ने एक नई परिकल्पना को जन्म दिया जोकि गुरुत्वीय लेंसींग(gravitational lensing) नाम से प्रसिद्ध हैं ! यह इस प्रकार था ;”यदि एक प्रकाश -किरण गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में से गुज़रे तो वह मुड़ जायेगी ! इसका मतलब यह हुआ कि प्रकाश सरल रेखाओं में नही बल्कि वक्र रेखाओं में गमन करता हैं ,जोकि न्यूटन के सिधांत के विपरीत हैं ! उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस तथ्य का परीक्षण तारों के प्रकाश का ,सूर्य के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में,परीक्षण किया जा सकता हैं । दिन में सूर्य की तेज़ रोशनी के कारण तारे दिखाई नही देते हैं लेकिन सूर्यग्रहण (जब सूर्य ,चन्द्रमा और पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं और सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित चाँद की परछाई पृथ्वी पर पड़ती हैं । पृथ्वी के जो इलाके इस साए की चपेट में आ जाते है वहाँ सूर्य का कुछ हिस्सा कुछ समय के लिए दिखाई नही देती हैं । पूर्ण-सूर्यग्रहण की अवस्था में अन्धकार छ। जाता हैं ,दिन में रात हो जाता हैं ,दिन में तारे दिखाई देने लगते हैं ।) के समय तारे और सूर्य दिखाई नही देते हैं ,जैसाकि हम जानते हैं । आइन्स्टाइन ने कहा था कि उनके सिधांत का परीक्षण किया जा सकता हैं । यद्यपि इसके लिए उन्होंने जो तर्क दिया था वह उस समय पर्याप्त रूप से पुष्ट प्रतीत नही होता था । यही नही यह बहुत अजीब भी लगता हैं ।
दुनिया के वैज्ञानिको ने इस सिधांत (गुरुत्वीय लेंसींग )पर ध्यान दिया अंततः यह सिधांत पूर्णतया साबित भी हुआ !
अलबर्ट आइन्स्टाइन ने सामान्य सापेक्षतावाद(Theory of General Relativity) के सिद्धांत का विकास किया और उसे 1916 में ”ईयर बुक ऑफ़ फिजिक्स ”में प्रकाशित किया । इस सिधांत की रुपरेखा भी यहाँ नही दी जा सकती ! इसमें आइन्स्टाइन के गुरुत्वाकर्षण का नया सिधांत था ! इससे न्यूटन की अचर समय और अंतरिक्ष की संकल्पनाए खत्म हो गयी ! आइन्स्टाइन इस ब्रह्मांड को चार-विमाओ (चतुर्विम )से युक्त मानते थे जिसमे चौथा विमा समय था !
उनके अनुसार ब्रह्मांड का आकार इसमें मौजूद वस्तुओं के गुरुत्वाकर्षण से समझा जा सकता हैं उनके अनुसार इसके बिना ब्रह्मांड का अस्तित्व सम्भव नही हैं ! उन्होंने स्थिर ब्रह्मांड की अवधारणा पर जोर देते हुए कहा कि ;-भौतिक वस्तुओं के कारण ही ब्रह्मांड गोलाकार और सिमित हैं ,लेकिन आइन्स्टाइन का यह तर्क पूर्णतया गलत था आज अनेको तथ्य यह इंगित करते हैं कि ब्रह्मांड फ़ैल (expand ) रहा हैं ! आकाशगंगाओ के बीच दूरियां ठीक उसी तरह बढ़ रही हैं जैसा कि आप जन्म-दिन में घर को सजाने के लिए रंग-बिरंगे बिंदियुक्त गुब्बारे को फुलाते वक्त बिंदियो के बीच की दूरी को बढ़ते देखते हैं !
आइन्स्टाइन ने कहा ,गुरुत्वाकर्षण को सापेक्षता-सिधांत से सम्बन्धित करने का काम आशा से ज्यादा कठिन हैं क्योंकि यह यूक्लिड के ज्यामिति(हम जो ज्योमेट्री पढ़ते हैं ) से मेल नही खाता हैं ! यही कारण हैं यह समझने में कठिन भी प्रतीत होता हैं ! हम यूक्लीडियन ज्योमेट्री को सही मानते हैं ! यह पृथ्वी पर हमारे अनुभवों के आधार पर सही लगता हैं ,परन्तु अंतरिक्ष (ब्रह्मांड )में यह बिलकुल भी सही नही हैं ! आइन्स्टाइन के इस नये सिधांत ने भौतिक-शास्त्र के उस समस्या का हल कर दिया जिसके लिए वैज्ञानिक बहुत समय से भ्रमित थे । समस्या कुछ इस प्रकार थी -बुध ग्रह न्यूटन के नियमो के अनुसार नही चल रहा था ! उसमे अंतर केवल थोड़ा था लेकिन वह सुनिश्चित था ! इस विचलन न्यूटन के सिधान्तो के अनुसार नही समझा जा सकता था ! लेकिन आइन्स्टाइन के अनुसार इसका उत्तर यह था कि बुध ग्रह सूरज के नजदीक था इसलियें इस पर सूर्य के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का बहुत प्रभाव था ! आइन्स्टाइन ने बुध ग्रह की गति की गणना की और पता लगाया कि उसकी गति जैसी होने चाहिए वैसी ही थी । साधारण सापेक्षताके सिद्धांत के अनुसार हर शताब्दी में 43 सेकण्ड का विचलन होना चाहीये , और यह विचलन निरिक्षणों के अनुरूप था। यह प्रभाव काफ़ी छोटा है लेकिन गणना के अनुसार और सटीक है ।
इससे आइन्स्टाइन प्रसिद्ध हुए !विज्ञान न जानने वाले भी उनकी बहुत प्रशंसा करते थे !

 

 

 

 

 

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