by-प्रदीप कुमार
अंतरिक्ष और समय (Space and Time )
एक गतिशील यंत्र में लगा एक मापक-दंड जिस दिशा में गति होती हैं ,उस तरफ कुछ सिकुड़ता हैं ! किसी भी गतिशील यन्त्र में लगी हुई घड़ी स्थिर अवस्था की तुलना में धीरे चलती हैं ! इसका मतलब यह हैं कि गति जितनी ज्यादा होगी मापक -दंड उतना ही ज्यादा सिकुड़ेगा ! यदि आप यह सोंच रहे हो कि घड़ी प्रकाश की गति से चले तो मापक-दंड इतना ज्यादा सिकुड़ेगा की हमारी घड़ी बंद ही हो जायेगी ! लेकिन जैसा कि हम जानते हैं कि कोई भी वस्तु प्रकाश की गति से नही चल सकती (सापेक्षता के सिधांत के अनुसार ) !
मेरे ख्याल से अबतक ऐसे परिवर्तनों को नापने के लिये पर्याप्त गति से चलने वाले मापक-दण्डो और घड़ियो को नही बनाया गया हैं ,लेकिन आइन्स्टाइन के घड़ी से समन्धित तर्क का सत्यापन हाइड्रोजन मॉलिक्यूलस से किये गये प्रयोग से समझा जा सकता हैं ! आइन्स्टाइन ने बताया कि एक विकिरणयुक्त अणु को घड़ी समझा जा सकता हैं क्योंकि इसमें से निश्चित विद्युत-चुम्बकीय(electro-magnetic) तरंगे निकलती हैं ! इन तरंगो को स्पेक्ट्रोस्कोप से नापकर यह प्रयोग किया गया था !
आइन्स्टाइन के सिधान्तो ने हमे यह भी बताया कि मनुष्य का हृदय भी एक घड़ी की तरह ही हैं और हृदय की धड़कन भी वैसे ही गति द्वारा कम हो जाती हैं ,जैसे अन्य क्रियात्मक प्रक्रियाओ की गति कम हो जाती हैं ! लेकिन इस कमी का आभास गतिशील व्यक्ति को नही होता हैं क्योंकि उसकी घड़ी भी धीमी हो जाएगी इसलिए उसके अपनी नब्ज़ की धड़कन कम या सामान्य महसूस होती हैं ! लेकिन फ्यूचर के अंतरिक्ष-यानो में यह कमी बहुत अधिक होती हैं ।
यदि आप पृथ्वी की घड़ियो के मुताबिक 50 साल की अंतरिक्ष-यात्रा पर जाये और इतनी फ़ास्ट स्पीड (तेज़ गति से ) से यात्रा करे कि अंतरिक्ष-यान के घड़ियो के अनुसार केवल एक महिना लगे तो जब आप अंतरिक्ष यात्रा से वापस लौटकर आओगे तब आप एक महीना ही ज्यादा बड़े लगेंगे । लेकिन पृथ्वी के लोग 50 साल बड़े हो जायेंगे । कल्पना कीजिये कि स्पेस-ट्रेवल पर जाते वक्त आप 30 साल के हो और आप छोटा बच्चा छोड़कर जायें तो लौटने पर सापेक्षता-सिधांत के मुताबिक आपका पुत्र (बच्चा ) आपसे उम्र में 20 साल बड़ा होगा । यह बात हमे बहुत अजीब लगता हैं क्योंकि यह सामान्य -बुद्धि के विपरीत हैं ।
सापेक्षता-सिधांत कि जब भी प्रयोगिक-रूप से जाँच हुई हैं ,वे पूरी तरह से सही साबित हुई हैं ! द्रव्य और उर्जा समीकरण का प्रमाण इनका सबसे मशहूर उदाहरण हैं !
किसी भी पिंड की गति में त्वरण के लिए जरुरी बल की मात्रा को द्रव्यमान (mass)कहते हैं ! भौतिकी मे द्रव्यमान ऊर्जा से जुडा हुआ है। किसी पिंड का द्रव्यमान गतिशिल निरीक्षक के सापेक्ष उस पिंड की गति पर निर्भर करता है। गतिशिल पिंड यदि अपने द्रव्यमान की गणना करता है तब द्रव्यमान हमेशा समान ही रहेगा। लेकिन यदि निरिक्षक गतिशिल नही है और वह गतिशिल पिंड के द्रव्यमान की गणना करता है, तब निरिक्षक पिंड की गति के त्वरित होने पर उस पिंड के द्रव्यमान मे वृद्धि पायेगा। सरल शब्दो मे आप एक जगह खडे होकर किसी गतिशिल पिंड के द्रव्यमान की गणना कर रहे हों और वह पिंड अपनी गति बढाते जा रहा हो तो आप हर मापन मे उस पिंड के द्रव्यमान को पहले से ज्यादा पायेंगे। इसे ही सापेक्ष द्रव्यमान (relativistic mass)कहते है। ध्यान दिजीये कि आधुनिक भौतिकी मे द्रव्यमान के सिद्धांत का प्रयोग नहीं होता है, अब उसे ऊर्जा के रूप मे ही मापा जाता है। अब ऊर्जा और द्रव्यमान को एक ही माना जाता है। जोकि उर्जा-द्रव्यमान समीकरण के नाम से प्रसिद्ध हैं -E = mc² उन्होंने इस सिधांत को कुछ इस तरह साबित किया -कि प्रत्येक कण में उर्जा ,द्रव्य और प्रकाश की गति के वर्ग के गुणफल के बराबर होता हैं । प्रकाश की गति (निर्वात में ) 30000000000 cm/sec. हैं इसलिए एक ग्राम पदार्थ में लगभग 900000000000000000 जूल उर्जा पैदा होगी !
सुरुवात में यह सिधांत भी सामान्य-बुद्धि के विपरीत लगा लेकिन जब परमाणु बम बना तो यह समीकरण बिलकुल सत्य सिद्ध हुआ !
आगे के लेखो में सापेक्षता के सिधान्तो को विस्तार में देखेंगे !
Nice… But you need some improvement in your knowledge… keep reading… (y)
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सुन्दर लेख ,आभार ,
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आपके ब्लॉग पर फीडबर्नर सुविधा नहीं दिखी जिससे की आपके लेख सीधे मेल पर प्राप्त कर सके ,मेरा मेल – manoj.shiva72@gmail.com
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अब आप इस ब्लॉग के लेखों को ई-मेल के माध्यम से भी प्राप्त कर सकतें हैं ! धन्यवाद् मनोज शर्मा जी ,याद दिलाने के लियें 🙂
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प्रदीप जी आपका सपेक्षा सम्बन्धी लेख काफी पसंद आया। मुझे एक बात समझ नहीं आई। कृपया ये बताने का कष्ट करे की प्रकाश की गति निरपेक्ष किस प्रकार है।अन्य गतियों की तरह ये स्थिर व गतिमान निरीक्षकों के लिए सापेक्ष क्यों नहीं है। क्या समय का धीमा हो जाना इस का कारण है?
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